Thursday, March 7, 2024

आइये इस महिला दिवस समझते हैं- क्या है i-सक्षम संस्था की मुहिम "Voice & Choice"?

 राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस

प्रिय पाठकों, सीखें सीखाएं।। के जनवरी-फरवरी अंक में आपने ‘राष्ट्रीय महिला दिवस’ के बारे में तो जाना ही होगा। राष्ट्रीय महिला दिवस, 13 फरवरी को भारत की प्रसिद्ध महिला राजनीति कार्यकर्ता सरोजिनी नायडू जी की जयंती के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। सरोजिनी नायडू जी एक कवियित्री भी थी उनकी कविताओं की कला और गीतात्मक गुणवत्ता के लिए उन्हें गांधी जी द्वारा ‘भारत की कोकिला’ का उपनाम भी दिया गया

साथियों, 8 मार्च को ‘अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस’ है हमारी संस्था महिलाओं के अधिकारों, अपने निजी मुद्दे, घर-परिवार के मुद्दे, समाज में परस्पर भागीदारी, Voice & Choice पर कार्य कर रही है तो आप अवश्य ही न सिर्फ इस दिन को बल्कि इस माह में अलग-अलग तरीकों से जागरूकता का कार्य कर ही रहें होंगें।

इतिहास के पन्नो से

“हम महिलाओं को मताधिकार दो”। यह नारा महिला दिवस, 8 मार्च 1914 को जर्मनी में दिया गया था। कारण था कि वहाँ महिलाओं को पूर्ण नागरिक अधिकार से वंचित रखा हुआ था। वो महिलायें जिन्होंने श्रमिकों, माताओं और नागरिकों की भूमिका पूरी निष्ठा से निभायी थी एवं जिन्हें नगर पालिका के साथ-साथ राज्य के प्रति भी करों का भुगतान करना होता था। इस हक़ की माँग के साथ, सभी महिलाएँ और लडकियाँ आयीं। रविवार, 8 मार्च 1914 को, शाम 3 बजे, जर्मनी की 9वीं महिला सभा में शामिल हुई।

परन्तु साथियों, यह पहली बार नहीं था जब पश्चिमी देशों की महिलायें अपनी voice रख रही थी। इससे पहले भी 1909 में अमेरिका में इस तरह का दिवस मनाया गया था। हम कह सकते हैं कि बीसवीं सदी के शुरूआती समय में महिलाओं के लिए एक विशेष दिन हो, वैश्विक पटल पर इस प्रकार की सोच का उद्गार हुआ।

भारत की बात करें तो प्राचीन भारत में महिलाओं का इतिहास काफी गतिशील रहा है। हालाँकि मध्यकालीन भारत में महिलाओं की दशा बहुत अच्छी नहीं थी। इसी काल में सती, परदा, जौहर, देवदासी व बाल-विवाह का प्रचलन था। जो अंग्रेजी शासन काल के दौरान राम मोहन राय, ईश्वर चंद्र विद्यासागर, ज्योतिबा फ़ुले, आदि जैसे कई सुधारकों ने प्रयासों से थोड़ी बेहतर हुई।

भारत की आजादी के संघर्ष में महिलाओं ने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। भिकाजी कामा, डॉ॰ एनी बेसेंट, प्रीतिलता वाडेकर, विजयलक्ष्मी पंडित, राजकुमारी अमृत कौर, अरुना आसफ़ अली, सुचेता कृपलानी, मुथुलक्ष्मी रेड्डी, दुर्गाबाई देशमुख और कस्तूरबा गाँधी कुछ प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानियों में शामिल हैं। सुभाष चंद्र बोस की इंडियन नेशनल आर्मी की झाँसी की रानी रेजीमेंट कैप्टेन लक्ष्मी सहगल सहित पूरी तरह से महिलाओं की सेना थी।

एक कवियित्री और स्वतंत्रता सेनानी सरोजिनी नायडू भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्ष बनने वाली पहली भारतीय महिला और भारत के किसी राज्य की पहली महिला राज्यपाल थीं।

महिलायें और Voice & Choice

तो साथियों अब तक आप जान गए होंगें कि ये Voice & Choice का कांसेप्ट कोई नया नहीं है। यदि आप इसके बारे में i-सक्षम में जुड़ने से पहले नहीं जानते थे तो जागरूकता की कमी इसका एक कारण हो सकता है। चलिए एक बार और प्रयास करते है Voice & Choice को समझने का।

जब हम Voice की बात करते हैं तो हमारा अर्थ है कि हम अपनी पसंद-नापसंद, जरूरतों, महत्वाकांक्षाओं, सपनों और अपने से रिलेटेड (related) विषयों में अपनी बात को रख सकें।

और इसी प्रकार जब हम अपनी choice की बात करते हैं तो हमारा अर्थ है- कि जिस भी बारे में हमने आवाज़ उठायी है, क्या उसे चुनने का, उस कड़ी में आगे बढ़ने का हक़ हमें हो।

उदाहरण के लिए-

  1. जैसे आप आगे पढ़ना चाहती हैं, कम्पटीशन की तैयारी या जॉब करना चाहती हैं।
  2. आप अभी विवाह करना चाहती हैं या पढ़ाई या कोई और अन्य कौशल अर्जित करना चाहती हैं।
  3. आप अपने घर और गाँव से बाहर किसी महत्वपूर्ण कार्य के लिए ‘अकेले’ जा सकती हैं या नहीं?

Choice से हमारा अभिप्राय यही है कि इस तरह के निर्णय लेने की क्षमता और अधिकार आपके पास हों।

जो महिला साथी i-सक्षम के साथ जुड़ गयीं हैं, उनके बारे में एक बात तो तय है कि वो Voice & Choice के कांसेप्ट को अच्छे से जानती हैं। समय आने पर अपने लिए, अपने घर-परिवार के लिए, अपने समाज के लिए सही निर्णय के लिए voice उठायेंगी ही।

लेकिन साथियों उनका क्या, जो इस कांसेप्ट को जानती ही नहीं हैं?

जिन्होंने कभी नहीं सोचा कि पापा, भैया, पति या किसी अन्य पुरुष की बात सुनकर, अपनी बात भी रखने का अधिकार उनको है!  वो अपनी पसंद-नापसंद शेयर कर सकती हैं।

उनके लिए सोचिये और आगे बढ़िये। अभी हमें बहुत काम करना है।

इस वर्ष अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की थीम Invest in Women: Accelerate Progress है। आप जानते हैं कि महिलाएं और लड़कियाँ पहले से ही घरों में बिना वेतन के काम करती हैं, खासकर पुरुषों की तुलना में। तो यदि हम शुरुआत से लड़कियों की शिक्षा और स्वास्थ्य पर ध्यान दे तो यह एक इन्वेस्टमेंट ही होगा। जो उन्हें भविष्य में आर्थिक रूप से अपने पैरों पर खड़े होने में मददगार सिद्ध हो सकता है। इस महिला दिवस की थीम बस यही कहती है कि समाज को आगे बढ़ाना है तो लड़कियों और महिलाओं को आगे बढ़ाओ

साथियों इस लेख के माध्यम से हम चाहते हैं कि आप लैंगिक समानता और महिलाओं द्वारा नेतृत्व किये गए आन्दोलनों के बारे में जानें। 

प्रत्येक क्षेत्र में सफल महिलाओं द्वारा लिखी गयी कविताओं तथा पुस्तकों को पढ़ें, उनके बारे में खोजबीन कर अपना मत बनाएं। जरुरत पड़ने पर अपनी क्लस्टर मीटिंग में अपने साथियों के साथ डिस्कस करें। संभव हो सके तो हमें लिखकर भेजें।

 

Monday, February 26, 2024

मैत्री प्रोजेक्ट के दुर्गम अनुभव : सीमा

अशिक्षित को शिक्षा दो, अज्ञानी को ज्ञान, शिक्षा से ही बन सकता हैं, मेरा भारत देश महान।

नमस्ते साथियों,

मुझे आमस प्रखंड के बड़की-चिलमी, नैनागढ़ के बच्चियों (प्रियंका कुमारी, उर्मिला कुमारी, सोनाली कुमारी) के पैरेंट्स से मिलने पर पता चला कि एक गरीब मजदूर होने के कारण उन्होंने अपनी बच्ची, प्रियंका कुमारी को मगह, धान पीटने के लिए भेज दिया हैं।

यह सुनकर मैंने पेरेंट्स से पूछा कि कब तक आएगी?

उन्होंने कहा कि आज ही आएगी।

मैंने कहा कि आज ही आएगी तो कल से विद्यालय भेजिएगा। यदि आप नहीं भेजेंगें तो मैं खुद ही आउंगी और इसे विद्यालय लेकर जाउंगी।

इतना प्रयास करके मैंने इसका नामांकन करवाया था, इसके बावजूद आपलोग अपने बच्चे को विद्यालय नहीं भेज रहे हैं। क्या यह एक अच्छी सोच है?                                                        

आप अभिभावक हैं! खुद सोचिए कि पढ़ाई हमारे जीवन के लिए कितनी महत्वपूर्ण है? अगर आप अपने बच्चे को एक दिन भी किसी कारणवश विद्यालय से वंचित करते हैं तो मानिए कि आप उसका भविष्य खराब कर रहें हैं। जिस दिन आपको शिक्षा का महत्व पता चलेगा, उस दिन आप अपने बच्चे को शिक्षित करने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगायेंगें।

इतना समझाने के बाद पैरेंट्स बोले कि दीदी आप बिल्कुल सही बोल रहे हैं। क्योंकि आप जो भी कार्य कर रहे हैं वह समाज सेवा है और सराहनीय है। आप हमारे बच्चे का भविष्य बने, इसलिए इतनी मेहनत कर रहें हैं।

मैं हमेशा यही सोच रखती हूँ कि हमारे द्वारा की गयी समाजसेवा से हर घर, हर गाँव, हर समाज के सभी बच्चे शिक्षा ग्रहण कर, एक अच्छा नागरिक बनें। जिससे मुझे ख़ुशी मिलेगी और हमारा उद्देश्य भी पूरा होगा। मैंने अपने जीवन में आज तक जो भी कार्य किये बहुत ही जिम्मेदारीपूर्वक और ईमानदारी के साथ किये।

आगे भी मैं ईमानदारी के साथ कार्य करुँगी, तभी मुझे खुद पर और अपने काम पर गर्व होगा। यही कार्य मुझे खुश भी रखेगा। समाज में सबसे बहुमूल्य चीज यदि कुछ है तो वो है "ज्ञान"। मानव के मूलभूत अधिकारों में ज्ञान की प्राप्ति प्राथमिकता में होनी चाहिए। हर व्यक्ति का पहला सपना शिक्षित व्यक्ति बनने का होना चाहिए क्योंकि शिक्षित व्यक्ति ही समाज में परिवर्तन ला सकता है। विद्यार्थियों को ऐसे विचारों के बारे में अवश्य पढ़ना चाहिए, जिनके बारे में पढ़कर विद्यार्थी शिक्षित होने की राह में खुद को प्रेरित कर सकते हैं। शिक्षा ही एक ऐसा माध्यम है जो हमें सफलता की ओर अग्रसर करती है।

शिक्षा ही संसार में हमें श्रेष्ठ बनाती है सिर्फ किताबी ज्ञान ही शिक्षा नहीं होता, अपितु हमारा मानसिक विकास भी सफलता के लिए आवश्यक है। शिक्षा पाकर आप स्वयं को प्रेरित करने के साथ-साथ, समाज शिक्षा जैसे मूल अधिकारों के लिए अन्य लोगों को जागरूक कर सकते हैं। बच्चे वही सीखते हैं, जो आसपास देखते हैं। माहौल और रहन-सहन का उनपर काफी प्रभाव पड़ता है। बच्चे की सही संगत उसके व्यक्तित्व के विकास में अहम भूमिका निभा सकती है। बच्चा किसी भी काम को करने में पीछे रहता है, तो पेरेंट्स को तरीका बदलने की जरूरत है।

 

इसीलिए कहा गया है-

संग बड़े बचपन के साथी,

कौन, कहाँ कल आएगा।

स्कूल में जो संग बिताया,

वक्त बहुत याद आएगा।।

 

सीमा
टीम सदस्य, गया

फील्ड वेरिफिकेशन में गुरुदेव ने बहुत मदद की : Kritika

आज मैं आप लोगों के साथ अपने फील्ड विजिट का अनुभव साझा करने जा रही हूँ जैसा कि आप सभी को पता है कि अभी 7 से 14 वर्ष के बच्चो का वेरिफिकेशन करना है कि बच्चे स्कूल जा रहे हैं या फिर नहीं। नहीं जा रहे हैं तो क्या कारण है?

तो आज मैं सबसे पहले तो इटहरी गाँव वेरिफिकेशन के लिए गई थी। गाँव जाकर मैं कुछ बच्चों के अभिभावकों से मिली और बच्चो के बारे में पूछा तो पता चला कि बच्चे प्राइवेट स्कूल में पढ़ रहे हैं। 

फिर मैं वहाँ से करहरिया गाँव, नीरपुर गाँव और कुमारपुर गाँव के लिए निकल पड़ी। सबसे पहले मैं कुमारपुर गाँव गई, फिर वहाँ से नीरपुर गाँव गई। वेरिफिकेशन करने के बाद मैं रघुनाथपुर गाँव के लिए चली गई, वहाँ जाकर मैं सारे बच्चों का डाटा देखकर, हर एक के घर गई। दो-तीन बच्चो का वेरीफिकेशन करने के बाद, मुझे चौथे बच्चे के घर जाना था, जिसका नाम गुरुदेव कुमार था।

जब मैं गुरुदेव कुमार से जब मिली तो वह अपने घर के बाहर सारे बच्चों के साथ कंचे खेल रहा था। मैंने उसे जब उसके पिता का नाम बताया तो उसने मुझे कहा कि हाँ दीदी, यह मेरे ही पिता जी का नाम है।

फिर वो अपनी माँ को बुलाकर लेकर आया तो मैंने उनसे नामांकन ना होने की वजह पूछी। उन्होंने मुझे अपने नामांकन न करने की वजह बतायी।

उसके बाद मैं दूसरे बच्चों के लिए जब वेरिफिकेशन के लिए जा रही थी तो मुझे बच्चों का घर नहीं मिल रहा था। बहुत सारे अभिभावक कभी इस गली में जाने को बोलते थे तो कभी उस गली भेज देते थे।

जिससे मैं बहुत परेशान हो गई थी क्योंकि एक ही गाँव में मुझे 10 चक्कर लगाने पड़ रहे थे और मेरा टाइम भी जा रहा था। मुझे परेशान देखकर गुरुदेव कुमार ने मेरी मदद करने की सोची। 

उसने बोला कि दीदी, मैं आपकी मदद कर सकता हूँ। क्योंकि मुझे पता है मेरा गाँव है तो आप चलिए मेरे साथ और वह मेरे साथ पूरे गाँव के बच्चों को ढूंढने में मेरी मदद करने लगा”।

उसने मेरी काम आसान कर दिया और यह देख मुझे बहुत अच्छा लगा कि वह बच्चा काफी एक्टिव था और मुझसे बार-बार पूछ रहा था कि दीदी मेरा एडमिशन आप पक्का करवा दीजिएगा ना?

क्योंकि मुझे पढ़ना अच्छा लगता है। मैं आगे पढ़ना चाहता हूँ। तो मैंने भी उससे कहा कि हाँ मैं तुम्हारा नामांकन करवा दूँगी। जिसे सुन गुरुदेव बहुत खुश हुआ और फिर मैं वहाँ से ऑफिस के लिए निकल पड़ी।

जब मैं ऑफिस के लिए आ रही थी तो फिर उसने मुझे कहा कि दीदी आपको कभी भी मेरी इस गाँव में मेरी मदद की जरूरत पड़े तो आप मेरे घर आ जाइयेगा। मैं आपकी मदद करूंगा। यह सुन मुझे भी काफी खुशी हुई और मैं उसे धन्यवाद बोलकर निकल पड़ी।

कृतिका कुमारी
मुंगेर

हिन्दी वर्तनी से सम्बन्धित ध्यान देने योग्य बिन्दु: Priyanka Kaushik

 

हिन्दी वर्तनी से सम्बन्धित ध्यान देने योग्य बिन्दु

 

नमस्ते साथियों,

सीखें। सिखाएं।। के पूर्व के दो अंकों में हमने वर्तनी को शुद्ध करने हेतु भाषा में अशुद्ध प्रयोग और शुद्ध प्रयोग की तुलना करते हुए मिथकों को तोड़ने का प्रयास किया। इसी कड़ी में आगे कुछ नये विन्दुओं के विषय मे जानते हैं और इन्हें अपनी लेखनी में प्रयोग करने का प्रयास करते हैं।

ए और ये का उपयोग:

“ए” का उपयोग:

किसी शब्द के अंत में “ए” का प्रयोग ज़्यादातर तब किया जाता है जब हम किसी से अनुरोध कर रहे हों। जैसे: कीजिए, आइए, बैठिए, जाइए, सोचिए, बताइए आदि।

उदाहरण: देखिए, अब आप भी इस बिन्दु को समझने की कोशिश कीजिए। (देखिये और कीजिये नहीं)

“ये” का उपयोग:

लेकिन जब अनुरोध की बात न हो तब “ये” उपयोग किया जाता है। जैसे: बनाये, खिलाये, सजाये, बजाये, दिखाये, सुनाये आदि।

उदाहरण: अल्का ने तरह-तरह के पकवान बनाये और खिलाये। (बनाए और खिलाए नहीं


नीचे दिए गये चित्र में एम्बुलेंस के पीछे लिखे वाक्य को ध्यानपूर्वक देखें कि “लिऐ” कैसे लिखा हुआ है। क्या यह सही है? अपने साथियों के साथ विचार करें।


ई और यी का उपयोग:

“ई” का उपयोग: ज़्यादातर “ई” संज्ञा शब्दों के अंत में ही आता है क्रियाओं में नहीं। जैसे: सिंचाई, कटाई, कढ़ाई, मिठाई, मलाई, रज़ाई, दवाई, आदि।

उदाहरण: खेतों की सिंचाई हो गयी है अब फ़सलों की कटाई बाक़ी है। (सिंचायी और कटायी नहीं)

“यी” का उपयोग: इसी तरह क्रियाओं के अंत में “यी” आता है। जैसे: दिखायी, मिलायी, सतायी, जमायी, पायी, खायी आदि।

उदाहरण: उसने मुझे “सीखें-सिखाएं” पत्रिका दिखायी। (दिखाई नहीं)

हम, देश और गणतंत्र : Poem by Aditya Tyagi

         हम, देश और गणतंत्र


बेहतर सदा करते रहें, मन, वचन और कर्म से,

हर क्षण को समझें, करेंसंविधान के मर्म से।

हम में कर कोई है, प्रगति और बदलाव का नायक,

चलो थोड़ा और बनाएं अपने कोप्रकृति और देश के लायक।

जिस पर हो पीढ़ियों को गर्व, घर, गाँव, मोहल्ला, देश बनाएँ,

छोटी-बड़ी, हर मुश्किल को, मिल कर के सुलझाते जाएँ।

सीखना और सीखना है, आगे बढ़ने का मंत्र,

अहं से बड़ा वयम्, वयम् से बड़ा गणतंत्र।

आदित्य त्यागी

टीम सदस्य

जीवन-मृत्यु : Poem by Dharamveer

                जीवन-मृत्यु

धूप में बीता एक समय, छाँव में चला दूसरा,

मृत्यु की रेखा से, जीवन का मेला जुड़ा।

 

समय की गति, बदलती हर समय,

जीवन की मिठास, बसी है यही कहानी के साथ।

 

जीवन के धागे, उलझे हुए संसार में,

हर कदम पर नई राह, हर पल में है नया सफर।

 

चमत्कारों का आश्रय नहीं, है जीवन का सत्य,

धागों का समूह, है जीवन की सही पहचान।

 

मृत्यु एक सरल रेखा, जीवन एक कठिन कहानी,

पर उन उलझे हुए धागों में, बसी है अनगिनत माया।

धर्मवीर कुमार

टीम सदस्य, गया

"खुद को ऐसा बनाना है"- Poem by Shahila Shahid

 "खुद को ऐसा बनाना है"


रोज नया सवेरे लाना

रोज नया है लक्ष्य बनाना

हारने से खुद को नही डराना

खुद को ढीठ बनाना है,


खुद को ऐसा बनाना है

खुद को ऐसा बनाना है।


चाहे आए कैसी भी मंजिल

बस उसको पार कर जाना है

चाहे बोले लाख लोग भी

चाहे बोले अपना परिवार भी

उन्हें कुछ करके दिखाना है,


खुद को ऐसा बनाना है

खुद को ऐसा बनाना है।



सबसे जीत के वहाँ तक जाना

जहाँ तक सोचा नही था जमाना

चाहे जितना भी वक्त गवाना है

खुद को वहाँ तक पहुँचाना है,


खुद को ऐसा बनाना है

खुद को ऐसा बनाना है।।


शाहिला शाहिद
मुंगेर