Friday, April 19, 2024

बाल-उत्सव के कुछ ऑब्जरवेशन पॉइंट्स

नमस्ते साथियों,

मैं 6 फरवरी को बाँके बाज़ार प्रखंड के प्राथमिक विद्यालय सिंधपुर में मनाये गए बाल-उत्सव के कुछ ऑब्जरवेशन पॉइंट्स लिख रही हूँ।

·       कुर्सी रेस, टॉफी रेस तथा अन्य भाग-दौड़ वाली गतिविधियों में बच्चों के भाग लेने से, कुछ बच्चे बहुत सक्रीय एवं खुश दिखे।

·       प्रधानाध्यापक और शिक्षक हमारी टीम के प्रयास की सराहना कर रहे थे। उन्होंने इस बाल-उत्सव को कराने में बहुत सहयोग भी किया।

·       अभिभावक बोल रहे थे कि अब जिस बच्चे का विद्यालय आने का मन नहीं भी करता होगा, वो भी आएगा। इस तरीके के प्रोग्राम बच्चों के लिए जरुरी होते हैं।

·       प्रधानाध्यापक का मानना था कि i-सक्षम टीम की वजह से बच्चे नई-नई चीजें सीख रहें हैं। बच्चों का ड्राप-आउट रेट कम हो रहा है और लगातार फॉलो-अप करते रहना कोई आसन कार्य नहीं है।


  अंजना 

   मैत्री टीम, गया

जैसे कि बच्चों ने भूत देख लिया हो!

नमस्ते साथियों

मैं 20 फरवरी को, गया ज़िले के बांके बाज़ार स्थित परसाचुआ गाँव में रिटेंशन करने के लिए गया था। इस गाँव के चारों तरफ पहाड़ ही पहाड़ हैं और बीच में यह गाँव बसा हुआ है।

जब मैं गाँव में पहुँचा तो मैंने देखा कि सभी बच्चे एक जगह इकट्ठे होकर सड़क पर खेल रहे थे। मुझे देखकर सभी बच्चे इधर-उधर भागने लगे। कोई अपने घर में छुपकर जा दुबका तो कोई अपनी छत पर चढ़ गया! जैसे कि इन्होनें भूत देख लिया हो।

यह सब देखकर मैं सोचने लगा कि अब इन बच्चों को कैसे समझाया जाए?

तब हम एक-एक बच्चे के घर गए, उनके अभिभावकों से मिले। उनके बच्चों को बुलाने को कहा, तो बच्चे आ भी गए। हमने सभी से प्रश्न करना शुरू किया, कि आप विद्यालय क्यों नहीं गए हो?


कोई बच्चा बोला कि कॉपी-कलम नहीं है, कोई बोला कि ड्रेस साफ़ नहीं है और भी अन्य बहाने बनाने लगे।

अभिभावक भी बोलने लगे कि विद्यालय से आकर बच्चे अपनी कॉपी, जहाँ-तहाँ रख देतें हैं। मैंने बच्चों को समझाने का प्रयास किया कि ऐसा नहीं करते हैं। ऐसा करने से विद्या नहीं आती है।

मैंने इस टोले से दो बच्चों का एडमिशन कराया था। अन्य अभिभावकों को कहीं यह न लगे कि मैं बस इन्ही दो बच्चो के बारे में चिंतित हूँ। यह सोचकर मैंने सभी बच्चों को समझाना शुरू किया। उन्हें रोज़ विद्यालय जाने के लिए मोटीवेट किया।

मेरा अनुभव यह भी है कि महादलित टोले के बच्चे, दूसरे बच्चों को देखा-देखी विद्यालय जाते हैं। कितने बच्चे यह भी बोलते हैं कि इस टोले के बच्चे रोज़ विद्यालय नहीं जाते हैं। उनके मन में इस तरह की बात घर कर लेती है।

हमने सबको समझाने के बाद अभिभावकों से बच्चों को रोज़ विद्यालय भेजने का आग्रह किया। सभी ने हाँ कहा कि हम कल से बच्चे को विद्यालय भेजने की पूरी कोशिश करेंगें।

प्रमोद कुमार
मैत्री टीम, गया

 


Thursday, April 18, 2024

बैठने के लिए दरी माँगी थी, मिले बेंच

 
साथियों, आपने पिछले माह, रीतू (बेगूसराय) का अनुभव- “दरी की व्यवस्था” तो पढ़ा ही होगा। अब पढ़िए काजल (जमुई) द्वारा दरी की व्यवस्था की माँग का अनुभव।

नमस्ते साथियों,


मैं अपने स्कूल का अनुभव साझा करने जा रही हूँ। मैं बहुत दिनों से अपने स्कूल के प्रधानाध्यापक से दरी मँगाने के लिए अनुरोध कर रही थी। मैंने उन्हें बहुत बार  रिक्वेस्ट की कि सर, बच्चों के लिए दरी की व्यवस्था करा दीजिये, बहुत सर्दी है।

सर कुछ नहीं बोलते थे।
 
जब मैं फरवरी के अंतिम सप्ताह में स्कूल गयी तो मैंने अपनी क्लास में बेंच लगे हुए देखे। बच्चे भी खुश थे।
मैं तुरंत सर के पास दौड़कर गयी और उन्हें प्रणाम किया। सर ने पूछा कि अब तो तुम खुश हो न? क्योंकि मैंने तुम्हारी बात मान ली है। बच्चों के लिए दरी नहीं, बेंच ला दियें हैं।


मैंने उन्हें हाँ में उत्तर दिया।




और साथियों ये ख़ुशी मेरे फेस पर पूरे दिन रही। मुझे अच्छा लगा कि मैं बच्चों के लिए कुछ कर पायी।
 

  काजल कुमारी, बैच-10, जमुई

 

जाना था मुगराईन और मैं पहुँची मुगराईयां

 नमस्ते दोस्तों,

आज मैं, माधुरी की क्लास विजिट का छोटा सा अनुभव साझा कर रही हूँ। मैं घर से जल्दी निकली (पौने नौ बजे)। क्योंकि माधुरी का स्कूल, पक्की सड़क से दो किलोमीटर अंदर हैं। मुझे मुगराईन जाना था और मैं मुगराईयां पहुँच गयी। ये एक जैसे नाम के दो गाँव और दो स्कूल थे। यह भी करीब दो किलोमीटर अन्दर ही था।

 
अब मैं गलत गाँव में पहुंचकर सोच में पड़ गयी कि क्या करूँ? यहाँ तो ऑटो भी नहीं मिल रहा। अब तो समय पर स्कूल पहुँच पाना असंभव सा लग रहा था। तभी रस्ते में एक वृद्ध महिला मिली। मैंने उन्हें अपनी परेशानी साझा  की। तभी वहाँ से एक बाइक सवार भैया जा रहे थे। शायद इन (वृद्ध महिला) के जानने वाले होंगे।
इन्होने उस भैया से कहा कि इस लड़की को मुगराईन स्कूल तक छोड़ आओ। भैया, तुरंत मान गए।
पर उनकी बाइक पर बैठने से पहले मेरे मन में सौ सवाल घर कर रहे थे। मम्मी-पापा और समाज से लेकर पता नहीं क्या-क्या चल रहा था। मुझे डर भी लग रहा था और बहुत टेंशन भी हो रही थी।
 
मेरे पास और आप्शन नहीं थे, इस कारण मैंने बाइक पर बैठना सही समझा। भैया ने मुझे स्कूल तक ड्राप किया और मेरी टेंशन खत्म हुई। मैंने उन्हें धन्यवाद किया।
 
जब मैं स्कूल में अन्दर गयी तो थोड़ा नर्वस फील हो रहा था। क्योंकि मैं सेण्टर पर पढ़ाती हूँ और ये अनुभव मेरे लिए नया था। मैं पहली बार स्कूल विजिट करने गयी थी। मुझे यहाँ बच्चों का असर टेस्ट कंडक्ट कराना थामुझे विद्यालय के टीचर्स बहुत अच्छे और सहायक लगे। उन्होंने मुझे बहुत आदर भी दिया और मेरे काम में मदद भी की


 
रीमा शर्मा
बडी, गया

 

अब पहले से ज्यादा सशक्त महसूस करती हूँ।

यह लेख बैच-10 की काजल के बारे में हैं। जब वो i-सक्षम से जुड़ी उन्हें बिलकुल नहीं लगा था कि वो ये 2 वर्ष की फ़ेलोशिप को पूरा कर पाएंगी।

लगातार सेशंस में जुड़ने पर उन्हें लगा कि मैं सही में यहाँ से हर बार कुछ नया सीख रही हूँ। तो मुझे फ़ेलोशिप तो पूरी करनी ही चाहिए।

जैसे- “मैं अपनी बातों को कभी घर में भी नहीं रख पाती थी। न ही घर से बाहर कहीं बोल पाती थी। मैं खुद की पढाई भी सही तरीके से नहीं कर पाती थी। कभी ध्यान नहीं देती थी। PTM के दौरान भी मुझे अपनी बात रखने में थोड़ी समस्या आती थी”।


लेकिन जब मैं सेशन के टॉपिक्स पर अपनी सोच गहरी करती गयी और एक समझ बनायी कि अपनी voice & choice को रखना बहुत जरुरी होता है।

जब मैंने अपनी बातें रखना शुरू किया, तभी मुझे खुद के लिए आवाज़ उठाने का भी मन किया। मैंने अपनी पढ़ाई शुरू की।


अब PTM में भी अपनी भाषा में या गाँव वालो की भाषा में खुलकर बोल पाती हूँ। अब मैं क्लस्टर में भी अपनी बातों को रखती हूँ और गाँव की लड़कियों और महिलाओं को भी अपनी स्टोरी बताकर प्रेरित करने की कोशिश करती हूँ। मुझे i-सक्षम की ये फ़ेलोशिप यात्रा अच्छी लग रही है।

अपनी स्कूटी भी खरीदी:

पहले सेशन में आने के लिए, स्कूल या गाँव जाने के लिए मुझे काफी चलना पड़ता था। ट्रांसपोर्ट ना मिलने के कारण समय खराब होता था।

इसलिए मैंने अपने घरवालों के सामने
स्कूटी खरीदने की बात रखी। मेरे माता-पिता ने मेरी बात मानी और मुझे स्कूटी खरीद कर दी। अब मैं पहले से और ज्यादा सशक्त महसूस करती हूँ।

स्कूटी से ही स्कूल, क्लस्टर और ऑफिस भी जाती हूँ। ऐसा नहीं था कि मुझे स्कूटी चलाना बहुत अच्छे से आता था। परन्तु मैं प्रैक्टिस करती रही और अब अच्छे से सीख गयी हूँ। अब तो आस-पड़ोस के लोग मुझे देखकर अपने बच्चों को आगे बढ़ने और पढ़ाई करने की सलाह देते हैं।

राधा, कम्युनिकेशन बडी, मुज्ज़फ्फरपुर


                           




शादी तय होने के बाद, एडु-लीडर ने किया मना

नमस्ते साथियों,

मैं आज आपलोगों के साथ अपनी एडु-लीडर के बारे में बताना चाहती हूँ। उन्होंने कैसे अपने परिवार में अपनी voice and choice को रखा और अपनी सही बात मनवायी।


ये लेख मेरी एडु-लीडर दीपांजली दीदी के बारे में हैं। जिनकी शादी मई 2023 में उनके मम्मी-पापा ने किसी नज़दीकी रिश्तेदार के लड़के से तय की थी। लड़के का उनके घर आना-जाना शुरू हो गया।

दीपांजली दीदी की लड़के से फ़ोन पर बात होने लगी। कुछ महीने बात करने के बाद दीदी को ऐसा महसूस हुआ कि वो लड़का उन्हें धन-दौलत और बाकी जरुरी चीज़ें तो दे सकता है। परन्तु वो मेरी, मेरी Choices की इज्ज़त नहीं करेगा।


क्योंकि दीदी जब फैलोशिप सेशन के लिए घर से आती थी तो वह लड़का शादी से पहले ही उन्हें मना करने लगा। उनके साथ बत्तमीजी से भी पेश आता था। उनकी बातों को काटता था और उन्हें गाली भी देता था।

जब दीदी ये सब बातें अपनी मम्मी को बतायी तो उनकी मम्मी ने उन्हें अपने पापा से यह सब छुपाने को कहा। क्योंकि उनके पापा हार्ट के मरीज़ हैं |


लेकिन दीदी ने अपने भविष्य के बारे में सोचकर, अपनी आगे की सेहत का ख्याल रखते हुए अपने लिए Voice उठायी।

उन्होंने सारी बातें अपने पापा को बतायी और उनके पापा ने सब कुछ सुनकर एक सही निर्णय लिया। उन्होंने इस रिश्ते में आगे बढ़ने से मना कर दिया। दीदी की शादी को लेकर किये गए निर्णय को जनवरी 2024 में बदला

दीदी अब खुश हैं कि उन्होंने अपनी बात रखी और उसे सुना गया। अब वो मन-लगाकर अपना कार्य कर रही हैं।

स्वाति सुमन
टीम सदस्य, मुज्ज़फ्फरपुर





पिछले क्लस्टर मीटिंग का गोल मैंने पूरा किया

मैं क्लस्टर मीटिंग का अनुभव साझा कर रही हूँ। इस बार हमारा क्लस्टर, बारभरारी में था। हमारी क्लस्टर मीटिंग में निक्की दीदी, प्रीतिमाला दीदी, प्रियांजली दीदी, पायल दीदी और धर्मवीर सर आए थे। आज क्लस्टर की शुरुआत माइंडफूलनेस से हुई। जो मैंने करवाया था।
 

इसके बाद हम सभी ने पायल दीदी के साथ परिचय किया। क्योंकि हम सब उनसे पहली बार मिल रहे थे। उनसे मिलकर उनके बारे में जानकर हमें अच्छा लगा। पायल दीदी को तीन एडु-लीडर्स से बात करनी थी, और उन्होंने इसी कस्टर मीटिंग में की।
 
फिर पिछली बार जो PTM को लेकर गोल्स बने थे, उसकी क्या प्रोग्रेस है? कहाँ समस्याएँ आयी? इस पर चर्चा हुई। मुझे उन्हें बताते हुए बहुत ख़ुशी हो रही थी कि पिछली बार मेरा गोल था कि मैं अगली PTM में 20 अभिभावकों को शामिल करुँगी और मैंने 21 अभिभावकों को शामिल किया।
 
सभी सदस्यों ने अपनी PTM में उपस्थित अभिभावकों की संख्या बतायी। फिर सब अपना-अपना बढ़ते कदम प्रेजेंट किए। इस बार हमारा बढ़ते कदम पर अच्छी प्रगति रही। अंत में हमने इस महीने के लिए गोल बनाये।

दीदी यहाँ पहली बार आयी थी और हम सभी बिना झिझक के उनसे बात कर पाये। यह आज हमारे लिए अच्छा रहा। आज का क्लस्टर काफी मजेदार रहा हमारे लिए।
 
ईशा कुमारी
बैच- 10 (b), गया